हौसले अपने रहनुमा तो हुए
हादसे ग़म का आसरा तो हुए
बे-वफ़ा ही सही ज़माने में
हम किसी फ़न की इंतिहा तो हुए
वादी-ए-ग़म के हम खंडर ही सही
आने वालों का रास्ता तो हुए
कुछ तो मौजें उठी समुंदर से
बे-सबब ही सही ख़फ़ा तो हुए
उन को अपना ही ग़म सही लेकिन
वो किसी ग़म में मुब्तिला तो हुए
ख़ुद को बेगाना कर के दुनिया से
चंद चेहरों से आश्ना तो हुए
ख़ंदा-ए-गुल हुए कि शोला-ए-जाँ
हाल पे मेरे लब-कुशा तो हुए
पत्थरों के नगर में जा के 'नज़र'
कम से कम संग-आश्ना तो हुए
ग़ज़ल
हौसले अपने रहनुमा तो हुए
जमील नज़र