हस्ती को मिरी मस्ती-ए-पैमाना बना दे
ऐ बे-ख़बरी हासिल-ए-मय-ख़ाना बना दे
तालिब हूँ मैं उस एक निगाह-ए-दो-असर का
जो होश में ला कर मुझे दीवाना बना दे
ऐ बरहमन इक दिन बुत-ए-पिंदार को अपने
तोड़ और चराग़-ए-दर-ए-बुत-ख़ाना बना दे
कह दो कि बहार आए तो बे-कार न बैठे
दीवाना बने या मुझे दीवाना बना दे
दीवानगी-ए-इश्क़ बड़ी चीज़ है 'सीमाब'
ये उस का करम है जिसे दीवाना बना दे
ग़ज़ल
हस्ती को मिरी मस्ती-ए-पैमाना बना दे
सीमाब अकबराबादी