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हस्ती को मिरी मस्ती-ए-पैमाना बना दे | शाही शायरी
hasti ko meri masti-e-paimana bana de

ग़ज़ल

हस्ती को मिरी मस्ती-ए-पैमाना बना दे

सीमाब अकबराबादी

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हस्ती को मिरी मस्ती-ए-पैमाना बना दे
ऐ बे-ख़बरी हासिल-ए-मय-ख़ाना बना दे

तालिब हूँ मैं उस एक निगाह-ए-दो-असर का
जो होश में ला कर मुझे दीवाना बना दे

ऐ बरहमन इक दिन बुत-ए-पिंदार को अपने
तोड़ और चराग़-ए-दर-ए-बुत-ख़ाना बना दे

कह दो कि बहार आए तो बे-कार न बैठे
दीवाना बने या मुझे दीवाना बना दे

दीवानगी-ए-इश्क़ बड़ी चीज़ है 'सीमाब'
ये उस का करम है जिसे दीवाना बना दे