हस्ती-ए-नीस्त-नुमा दीदा-ए-हैराँ समझा
तुझ को दौरान-ए-बक़ा ख़्वाब-ए-परेशाँ समझा
कुफ़्र-ओ-ईमाँ का अजब रंग है नैरंगी में
ये वो नैरंग है काफ़िर न मुसलमाँ समझा
लैली-ए-शोख़-अदा ऐन-ए-तसव्वुर जो बनी
क़ैस को दामन-ए-सहरा में हुदा-ख़्वाँ समझा
वुसअ'त-ए-मशरब-ए-रिंदाँ का नहीं है महरम
ज़ाहिद-ए-सादा हमें बे-सर-ओ-सामाँ समझा
रंग-ए-फ़ितरत ने बनाया है जो मजज़ूब-ए-क़िमाश
मंज़र-ए-आलम-ए-नैरंग-ए-बयाबाँ समझा
सालिक-ए-राह-ए-तलब आप हुए राह-ए-ग़लत
जादा-ए-मंज़िल-ए-दुशवार को आसाँ समझा
जाम-ए-सरशार से मसरूर रहेगा 'साक़ी'
तेरा मस्ताना भी ऐ साक़ी-ए-दौराँ समझा
ग़ज़ल
हस्ती-ए-नीस्त-नुमा दीदा-ए-हैराँ समझा
पंडित जवाहर नाथ साक़ी