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हसरतों में अब ये इक हसरत हमारे दिल में है | शाही शायरी
hasraton mein ab ye ek hasrat hamare dil mein hai

ग़ज़ल

हसरतों में अब ये इक हसरत हमारे दिल में है

मंज़र लखनवी

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हसरतों में अब ये इक हसरत हमारे दिल में है
इतना कह दीजे कि बे-चारा बड़ी मुश्किल में है

एक मूसा थे कि इन का ज़िक्र हर महफ़िल में है
और इक मैं हूँ कि अब तक मेरे दिल की दिल में है

आज क्यूँ हद से सिवा उलझन हमारे दिल में है
क्या नसीब-ए-दुश्मनाँ वो भी किसी मुश्किल में है

है कोई ऐसा जो साक़ी से कहे मेरे लिए
ये भी इक अल्लाह का बंदा तिरी महफ़िल में है

या इलाही ख़ैर यूँ हमदर्दियाँ होती हैं आज
जैसे मेरे दिल का सारा दर्द उन्हीं के दिल में है

देखना ये है उन आँखों में समा जाता है कौन
यूँ तो होने को ज़माना भर तिरी महफ़िल में है

देखिए किस के मुक़द्दर में लिखी है ये बहार
आज तो इक हार फूलों का कफ़-ए-क़ातिल में है

देखिए तो अपने वहशी की तसव्वुर में ख़ुशी
घर में तन्हा है मगर जैसे भरी महफ़िल में है

है मोहब्बत कोई बीमारी तो बीमारी क़ुबूल
हाए 'मंज़र' किस मज़े का दर्द अपने दिल में है