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हसरतें बन कर निगाहों से बरस जाएँगे हम | शाही शायरी
hasraten ban kar nigahon se baras jaenge hum

ग़ज़ल

हसरतें बन कर निगाहों से बरस जाएँगे हम

शौकत परदेसी

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हसरतें बन कर निगाहों से बरस जाएँगे हम
एक दिन आएगा जब उन को भी याद आएँगे हम

चाँदनी बन कर कभी दामन पे लहराएँगे हम
बन के आँसू गाह पलकों पर ठहर जाएँगे हम

शाम को जाम-ए-मसर्रत भर के छलकाएँगे हम
सुब्ह को दौर-ए-चराग़-ए-बज़्म बन जाएँगे हम

फिर कहाँ पाएँगे हम को नौ-उरूसान-ए-चमन
जब फ़ज़ा-ए-रंग-ओ-बू में जज़्ब हो जाएँगे हम

टूट जाएगा ग़ुरूर-ए-बहर-ए-ना-पैदा-कनार
इस तरह बिफरी हुई मौजों से टकराएँगे हम

जब ज़माना ख़ुद ही धोका बन गया 'शौकत' तो फिर
कौन जाने किस क़दर धोके अभी खाएँगे हम