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हसरत है तुझे सामने बैठे कभी देखूँ | शाही शायरी
hasrat hai tujhe samne baiThe kabhi dekhun

ग़ज़ल

हसरत है तुझे सामने बैठे कभी देखूँ

किश्वर नाहीद

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हसरत है तुझे सामने बैठे कभी देखूँ
मैं तुझ से मुख़ातिब हूँ तिरा हाल भी पूछूँ

दिल में है मुलाक़ात की ख़्वाहिश की दबी आग
मेहंदी लगे हाथों को छुपा कर कहाँ रक्खूँ

जिस नाम से तू ने मुझे बचपन से पुकारा
इक उम्र गुज़रने पे भी वो नाम न भूलूँ

तू अश्क ही बन के मिरी आँखों में समा जा
मैं आईना देखूँ तो तिरा अक्स भी देखूँ

पूछूँ कभी ग़ुंचों से सितारों से हवा से
तुझ से ही मगर आ के तिरा नाम न पूछूँ

जो शख़्स कि है ख़्वाब में आने से भी ख़ाइफ़
आईना-दिल में उसे मौजूद ही देखूँ

ऐ मेरी तमन्ना के सितारे तू कहाँ है
तू आए तो ये जिस्म शब-ए-ग़म को न सौंपूँ