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हसरत भरी नज़र से वो देखता है मुझ को | शाही शायरी
hasrat bhari nazar se wo dekhta hai mujhko

ग़ज़ल

हसरत भरी नज़र से वो देखता है मुझ को

हार्श बरहम भट

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हसरत भरी नज़र से वो देखता है मुझ को
कुछ बोलता नहीं है बस सोचता है मुझ को

रखता है दिल में मुझ को पलकों में बंद कर के
ख़्वाबों में अपने हर शब वो खोलता है मुझ को

मेरी ख़बर से मुझ को रखता है बा-ख़बर वो
मुझ से ज़्यादा शायद वो जानता है मुझ को

अब तक किसी ने ऐसा चाहा नहीं किसी को
जैसे कि अपने दिल से वो चाहता है मुझ को

उस को मैं माँगता हूँ सज्दे में सर झुका के
दस्त-ए-दुआ उठा के वो माँगता है मुझ को

अब मेरे वास्ते वो इक आइना है जैसे
वो इस क़दर सरापा पहचानता है मुझ को