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हसीनों में रुत्बा दो-बाला है तेरा | शाही शायरी
hasinon mein rutba do-baala hai tera

ग़ज़ल

हसीनों में रुत्बा दो-बाला है तेरा

ज़हीर देहलवी

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हसीनों में रुत्बा दो-बाला है तेरा
कि बीमार-ए-उल्फ़त मसीहा है तेरा

तमाशा है जो है तमाशा-ए-आलम
वो इस तरह महव-ए-तमाशा है तेरा

सितम इस पे कीजो मिरी जाँ समझ कर
नहीं दस्त ओ दामाँ हमारा है तेरा

मगर कुछ न कुछ चाल करता है तुझ पर
वो दम-बाज़ यूँ दम जो भरता है तेरा