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हसीं यादों से ख़ल्वत अंजुमन है | शाही शायरी
hasin yaadon se KHalwat anjuman hai

ग़ज़ल

हसीं यादों से ख़ल्वत अंजुमन है

सिकंदर अली वज्द

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हसीं यादों से ख़ल्वत अंजुमन है
ख़मोशी नग़्मा-ज़ार-ए-सद-सुख़न है

निगार-ए-गुल-बदन गुल-पैरहन है
धनक रक़्साँ चमन-अंदर-चमन है

मिरी दीवानगी पर हँसने वालो
यहाँ फ़र्ज़ानगी दीवाना-पन है

मुबारक रह-रव-ए-राह-ए-तमन्ना
वतन ग़ुर्बत में है ग़ुर्बत वतन है

डरा सकते नहीं ख़ूनीं अँधेरे
निगाह-ए-बे-दिलाँ ज़ुल्मत-शिकन है

ख़ुशी अर्ज़ां है बाज़ार-ए-जहाँ में
बहा-ए-ग़म मता-ए-जान-ओ-तन है

अज़ल से 'वज्द' हर क़तरे के दिल में
क़यामत-ख़ेज़ तूफ़ाँ मौजज़न है