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हसीं सुब्ह हसीं शाम चाहता हूँ मैं | शाही शायरी
hasin subh hasin sham chahta hun main

ग़ज़ल

हसीं सुब्ह हसीं शाम चाहता हूँ मैं

करन सिंह करन

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हसीं सुब्ह हसीं शाम चाहता हूँ मैं
कि ज़िंदगी को ख़ुश-अंजाम चाहता हूँ मैं

ज़रा सा मुस्कुरा के मेरी तरफ़ देख तो लो
हूँ तिश्ना बादा-ए-गुलफ़ाम चाहता हूँ मैं

नहीं है शक कोई इस में तो नेक-सीरत है
ज़माने भर में तिरा नाम चाहता हूँ मैं

वो जिस के वास्ते खाईं हैं ठोकरें कितनी
उसी को हम-सफ़र हर गाम चाहता हूँ मैं

तिरा ख़याल हो दिल में लबों पे ज़िक्र तिरा
कि फिर से यूँ सहर-ओ-शाम चाहता हूँ मैं

'करन' ये कौन कहे बढ़ के मेरे साक़ी को
कि उस के हाथों से इक जाम चाहता हूँ मैं