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हरीफ़ कोई नहीं दूसरा बड़ा मेरा | शाही शायरी
harif koi nahin dusra baDa mera

ग़ज़ल

हरीफ़ कोई नहीं दूसरा बड़ा मेरा

असअ'द बदायुनी

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हरीफ़ कोई नहीं दूसरा बड़ा मेरा
सदा मुझी से रहा है मुक़ाबला मेरा

मिरे बदन पे ज़मानों की ज़ंग है लेकिन
मैं कैसे देखूँ शिकस्ता है आइना मेरा

मिरे ख़िलाफ़ ज़माना भी है ज़मीन भी है
मुनाफ़िक़त के महाज़ों पे मोरचा मेरा

मैं कश्तियों को जलाने से ख़ौफ़ खाता नहीं
ज़माना देख चुका है ये हौसला मेरा

मिरे सवाल से हर शख़्स को मलाल हुआ
पे हल किया न किसी ने भी मसअला मेरा