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हर्फ़ों का दिल काँप रहा है लफ़्ज़ों की दीवार के पीछे | शाही शायरी
harfon ka dil kanp raha hai lafzon ki diwar ke pichhe

ग़ज़ल

हर्फ़ों का दिल काँप रहा है लफ़्ज़ों की दीवार के पीछे

कँवल ज़ियाई

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हर्फ़ों का दिल काँप रहा है लफ़्ज़ों की दीवार के पीछे
किस क़ातिल का नाम लिखा है लफ़्ज़ों की दीवार के पीछे

ख़ून से जलता एक दिया है लफ़्ज़ों की दीवार के पीछे
आज भी कितनी गर्म हवा है लफ़्ज़ों की दीवार के पीछे

करवट ले कर एक क़यामत जागने वाली है अब शायद
कहने को इक सन्नाटा है लफ़्ज़ों की दीवार के पीछे

सहमा सहमा खोया खोया कब से बैठा सोचा रहा हूँ
किस ने मुझ को क़ैद किया है लफ़्ज़ों की दीवार के पीछे

सब जाने पहचाने चेहरे मैं भी तू भी ये भी वो भी
लाशों का इक शहर बसा है लफ़्ज़ों की दीवार के पीछे

लफ़्ज़ों की दीवार के आगे अक्स उभर आया है किस का
ख़ंजर ले कर कौन खड़ा है लफ़्ज़ों की दीवार के पीछे

रूह-ए-ग़ज़ल पर तन्हाई में जाने कितने वार हुए हैं
मिस्रा मिस्रा थर्राता है लफ़्ज़ों की दीवार के पीछे