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हर्फ़-ए-दिल ना-रसा है तिरे शहर में | शाही शायरी
harf-e-dil na-rasa hai tere shahr mein

ग़ज़ल

हर्फ़-ए-दिल ना-रसा है तिरे शहर में

मज़हर इमाम

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हर्फ़-ए-दिल ना-रसा है तिरे शहर में
हर सदा बे-सदा है तिरे शहर में

कोई ख़ुश्बू की झंकार सुनता नहीं
कौन सा गुल खिला है तिरे शहर में

कब धनक सो गई कब सितारे बुझे
कोई कब सोचता है तिरे शहर में

अब चनारों पे भी आग खिलने लगी
ज़ख़्म लौ दे रहा है तिरे शहर में

जितने पत्ते थे सब ही हवा दे गए
किस पे तकिया रहा है तिरे शहर में

एक दर्द-ए-जुदाई का ग़म क्या करें
किस मरज़ की दवा है तिरे शहर में

अब किसी शहर की चाह बाक़ी नहीं
दिल कुछ ऐसा दुखा है तिरे शहर में