हरम की राह में साक़ी का घर भी आता है
सफ़र में लम्हा-ए-तर्क-ए-सफ़र भी आता है
तुझे कि पर्दा-नशीं ये हुनर भी आता है
नज़र भी आता नहीं और नज़र भी आता है
दबी दबी सी ज़बाँ में ये पूछना क़ासिद
कभी ख़याल में आशुफ़्ता-सर भी आता है
तुम्हारी बात है कुछ और यूँ तो आने को
ग़रीब-ख़ाने पे अक्सर क़मर भी आता है
ग़मों की शाम है बे-शक मगर उदास न हो
ब-शक्ल-ए-शाम पयाम-ए-सहर भी आता है
मिरी तबाही का बाइ'स मिरा नसीब सही
मगर ये हर्फ़ तिरी ज़ात पर भी आता है
जवाब-ए-ख़त की तो उम्मीद 'एहतिशाम' कुजा
ये देख लौट के पैग़ाम्बर भी आता है
ग़ज़ल
हरम की राह में साक़ी का घर भी आता है
क़ाज़ी एहतिशाम बछरौनी