EN اردو
हर ज़बाँ पर है गुफ़्तुगू तेरी | शाही शायरी
har zaban par hai guftugu teri

ग़ज़ल

हर ज़बाँ पर है गुफ़्तुगू तेरी

राधे शियाम रस्तोगी अहक़र

;

हर ज़बाँ पर है गुफ़्तुगू तेरी
है हर इक दिल में आरज़ू तेरी

मेहर-ओ-मह दोनों तुझ से शश्दर हैं
ये तजल्ली है चार-सू तेरी

मय से ऐ शैख़ गर तहारत कर
आबरू हो दम-ए-वुज़ू तेरी

ज़ुल्फ़ सुम्बुल है और कमर रग-ए-गुल
है ये तारीफ़ मू-ब-मू तेरी

गुल न फूलें समाए जामे में
गर सबा से वो पाएँ बू तेरी

लाई आहू को दाम में गोया
आँख पर ज़ुल्फ़-ए-मुश्कबू तेरी

दुर-ए-दंदाँ पे तो फ़िदा 'अहक़र'
चश्म-ए-गिर्यां है आबरू तेरी