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हर तरफ़ उस के सुनहरे लफ़्ज़ हैं फैले हुए | शाही शायरी
har taraf uske sunahre lafz hain phaile hue

ग़ज़ल

हर तरफ़ उस के सुनहरे लफ़्ज़ हैं फैले हुए

अम्बर बहराईची

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हर तरफ़ उस के सुनहरे लफ़्ज़ हैं फैले हुए
और हम काजल की इक तहरीर में डूबे हुए

चाँदनी के शहर में हमराह था वो भी मगर
दूर तक ख़ामोशियों के साज़ थे बजते हुए

हँस रहा था वो हरी रुत की सुहानी छाँव में
दफ़अतन हर इक शजर के पैरहन मैले हुए

आज इक मासूम बच्ची की ज़बाँ खींची गई
मेरी बस्ती में अंधेरे और भी गहरे हुए

हर गली में थीं सियह परछाइयों की यूरिशें
शब कई गूँगे मलक हर छत पे थे बैठे हुए

सब अदाएँ वक़्त की वो जानता है इस लिए
टाट के नीचे सुनहरा ताज है रक्खे हुए

सूप के दाने कबूतर चुग रहा था और वो
सेहन को महका रही थी सुन्नतें पढ़ते हुए

रात 'अम्बर' कहकशाँ से दूब ये कहने लगी
छाँव में मेरी हज़ारों चाँद हैं सोए हुए