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हर तरफ़ सतवत-ए-अर्ज़ंग दिखाई देगी | शाही शायरी
har taraf satwat-e-arzang dikhai degi

ग़ज़ल

हर तरफ़ सतवत-ए-अर्ज़ंग दिखाई देगी

क़तील शिफ़ाई

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हर तरफ़ सतवत-ए-अर्ज़ंग दिखाई देगी
रंग बरसेंगे ज़मीं दंग दिखाई देगी

बारिश-ए-ख़ून-ए-शहीदाँ से वो आएगी बहार
सारी धरती हमें गुल-रंग दिखाई देगी

पर्बतों से निकल आएँगे थिरकते पैकर
नग़्मा-ज़न, ख़ामुशी-ए-संग दिखाई देगी

राज़ में रह न सकेगी कोई इज़हार की लय
इक न इक सूरत-ए-आहंग दिखाई देगी

सोच को जुरअत-ए-पर्वाज़ तो मिल लेने दो
ये ज़मीं और हमें तंग दिखाई देगी

ताज काँटों का सही एक न इक दिन लेकिन
आशिक़ी ज़ीनत-ए-औरंग दिखाई देगी

जब भी परखेगा कोई प्यार के मेयार 'क़तील'
सारी दुनिया मिरे पासंग दिखाई देगी