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हर तरफ़ आज है ज़ुल्मात का पहरा देखो | शाही शायरी
har taraf aaj hai zulmat ka pahra dekho

ग़ज़ल

हर तरफ़ आज है ज़ुल्मात का पहरा देखो

महमूद इश्क़ी

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हर तरफ़ आज है ज़ुल्मात का पहरा देखो
दिल ये कहता है कोई चाँद सा चेहरा देखो

दर्द सरगम का हुआ और भी गहरा देखो
मुस्कुराते हुए पाज़ेब का लहरा देखो

गर्द उड़ती है न क़दमों की सदा आती है
क़ाफ़िला दर्द का किस मोड़ पे ठहरा देखो

उसे पायाब समझ कर न उतर जाओ कहीं
बहर ख़ामोश हुआ करता है गहरा देखो

जज़्बे सब मर गए लेकिन वो अभी है ज़िंदा
रुख़-ए-मग़्मूम पे हँसता हुआ सहरा देखो

दश्त-ए-पुर-हौल में राहिब सा अकेला है बबूल
जैसे वहशत-ज़दा आहू कोई ठहरा देखो