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हर-सू ख़ुशबू को फ़ज़ाओं में बिखरता देखूँ | शाही शायरी
har-su KHushbu ko fazaon mein bikharta dekhun

ग़ज़ल

हर-सू ख़ुशबू को फ़ज़ाओं में बिखरता देखूँ

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

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हर-सू ख़ुशबू को फ़ज़ाओं में बिखरता देखूँ
जब किसी शाख़ पे इक फूल को मरता देखूँ

अपनी आँखों में नया ख़्वाब सजा लूँ कोई
जब किसी ख़्वाब की ताबीर को मरता देखूँ

अपने हम-राह लहू रोती हुई आँखों पर
नींद का बोझ लिए शब को उतरता देखूँ

अपना मिट्टी का दिया और भी रौशन हो जाए
जब कभी चाँद को आँगन में उतरता देखूँ

खिड़कियाँ खोल लूँ हर शाम यूँही सोचों की
फिर उसी राह से यादों को गुज़रता देखूँ

'शम्अ' मत तोड़ना एहसास का आईना अगर
गुज़रे वक़्तों का कोई अक्स उतरता देखूँ