हर शख़्स में कुछ लोग कमी ढूँड रहे हैं
नादान हैं मुसबत में नफ़ी ढूँड रहे हैं
गुल ढूँड रहे हैं न कली ढूँड रहे हैं
गुलशन में बस इक शाख़ हरी ढूँड रहे हैं
इस युग में कहाँ हम भी वली ढूँड रहे हैं
इंसाँ में सिफ़ात-ए-बशरी ढूँड रहे हैं
बादल की सियाही में किरन जैसी चमकती
हर ग़म में छिपी हम भी ख़ुशी ढूँड रहे हैं
इक शे'र जो मौज़ूँ नहीं कर पाए हैं अब तक
'ग़ालिब' की ग़ज़ल में भी कमी ढूँड रहे हैं
मुद्दत से तक़ाज़ा है कि लौटा दो मिरा दिल
मुद्दत से बहाना है अभी ढूँड रहे हैं
तहज़ीब-ओ-तमद्दुन को ख़ुलूस और वफ़ा को
'आज़म' ही नहीं आज सभी ढूँड रहे हैं
ग़ज़ल
हर शख़्स में कुछ लोग कमी ढूँड रहे हैं
डॉक्टर आज़म