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हर शख़्स अपने आप में सहमा हुआ सा है | शाही शायरी
har shaKHs apne aap mein sahma hua sa hai

ग़ज़ल

हर शख़्स अपने आप में सहमा हुआ सा है

हामिद सरोश

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हर शख़्स अपने आप में सहमा हुआ सा है
देखो तो शहर सोचो तो वीरानियाँ बहुत

लेटा हुआ पंगोड़े में तकता है आसमाँ
लिक्खी हुई हैं आँखों में हैरानियाँ बहुत

ज़ाईद-गान-ए-शब को गवारा नहीं सहर
डसती हैं उन को सुब्ह की ताबानियाँ बहुत

दें कैसे उस का हाथ ज़माने के हाथ में
अब तक तो की हैं उस की निगहबानियाँ बहुत

पल-भर ख़ुशी भी हम ने ग़नीमत शुमार की
रहती हैं यूँ भी दिल को परेशानियाँ बहुत

किन पत्थरों से हम ने तराशे हैं रोज़-ओ-शब
काम आ गईं हमारी गराँ-जानियाँ बहुत