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हर साँस में मिस्मार खंडर टूटते रहना | शाही शायरी
har sans mein mismar khanDar TuTte rahna

ग़ज़ल

हर साँस में मिस्मार खंडर टूटते रहना

मुसव्विर सब्ज़वारी

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हर साँस में मिस्मार खंडर टूटते रहना
सुन सुन के शिकस्तों की ख़बर टूटते रहना

अफ़्लाक से मातम-ज़दा आवाज़ों की आमद
रह रह के सितारों के गजर टूटते रहना

यलग़ार हवाओं की परिंदों की सफ़ों पर
आँधी में परी-ज़ादों के पर टूटते रहना

दिन भर वही लम्हात से रहना मुतसादिम
शब भर वही लम्हों की कमर टूटते रहना

मलबे पे सवार आख़िरी फ़ातेह की तरह थे
बच्चों का मिरे खेल था घर टूटते रहना

लड़कों का अलमिय्या कि मसें तक नहीं भीगीं
शाख़ों से सभी कच्चे समर टूटते रहना