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हर क़दम आगही की सम्त गया | शाही शायरी
har qadam aagahi ki samt gaya

ग़ज़ल

हर क़दम आगही की सम्त गया

सलीम फ़िगार

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हर क़दम आगही की सम्त गया
मैं सदा रौशनी की सम्त गया

लफ़्ज़ ले कर ख़याल की वुसअत
शेर की ताज़गी की सम्त गया

मैं जो उतरा लहद के ज़ीने से
इक नई ज़िंदगी की सम्त गया

तिश्नगी को मैं अपने साथ लिए
दश्त-ए-आवारगी की सम्त गया

कच्चे रंगों की इस नुमाइश से
मैं उठा सादगी की सम्त गया

नुत्क़ फिर ताज़गी की ख़्वाहिश में
गोश-ए-ख़ामोशी की सम्त गया