हर परी-वश को ख़ुदा तस्लीम कर लेता हूँ मैं
कितना सौदाई हूँ क्या तस्लीम कर लेता हूँ मैं
मय छुटी पर गाहे गाहे अब भी बहर-एहतिराम
दावत-ए-आब-ओ-हवा तस्लीम कर लेता हूँ मैं
बे-वफ़ा मैं ने मोहब्बत से कहा था आप को
लीजिए अब बा-वफ़ा तस्लीम कर लेता हूँ मैं
जो अंधेरा तेरी ज़ुल्फ़ों की तरह शादाब हो
उस अँधेरे को ज़िया तस्लीम कर लेता हूँ मैं
जुर्म तो कोई नहीं सरज़द हुआ मुझ से हुज़ूर
बावजूद उस के सज़ा तस्लीम कर लेता हूँ मैं
जब बग़ैर उस के न होती हो ख़लासी ऐ 'अदम'
रहज़नों को रहनुमा तस्लीम कर लेता हूँ मैं
ग़ज़ल
हर परी-वश को ख़ुदा तस्लीम कर लेता हूँ मैं
अब्दुल हमीद अदम