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हर नफ़स वक़्फ़-ए-आरज़ू कर के | शाही शायरी
har nafas waqf-e-arzu kar ke

ग़ज़ल

हर नफ़स वक़्फ़-ए-आरज़ू कर के

इरफ़ाना अज़ीज़

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हर नफ़स वक़्फ़-ए-आरज़ू कर के
कुछ भी पाया न जुस्तुजू कर के

सौ शगूफ़े खिला दिए दिल में
ख़ंदा-ए-गुल से गुफ़्तुगू कर के

मुस्कुराता ही क्यूँ न रहने दो
फ़ाएदा चाक-ए-दिल रफ़ू कर के

कितने नौख़ेज़-ओ-नौ-दमीदा फूल
मर मिटे ख़्वाहिश-ए-नुमू कर के

ग़ैरत-ए-दिल ने आह-ए-सोज़ाँ को
रख दिया सुर्मा-ए-गुलू कर के