हर मुलाक़ात पे सीने से लगाने वाले
कितने प्यारे हैं मुझे छोड़ के जाने वाले
ज़िंदगी भर की मोहब्बत का सिला ले डूबे
कैसे नादाँ थे तिरे जान से जाने वाले
जान निकली है तो दिल और भी भारी हुआ है
सख़्त हलकाँ हैं मिरी लाश उठाने वाले
अब जो बिछड़े तो शब-ए-हिज्र-ए-मुदाम आएगी सुन
मेरे नादान मिरे छोड़ के जाने वाले
अब जो मैं ख़ाक हुआ हूँ तो हवा हो गए हैं
जिस्म-दर-जिस्म मिरा साथ निभाने वाले
ग़ज़ल
हर मुलाक़ात पे सीने से लगाने वाले
विपुल कुमार