EN اردو
हर मोड़ पे सफ़र था अजब बोलने न पाए | शाही शायरी
har moD pe safar tha ajab bolne na pae

ग़ज़ल

हर मोड़ पे सफ़र था अजब बोलने न पाए

अलीम सबा नवेदी

;

हर मोड़ पे सफ़र था अजब बोलने न पाए
मंज़िल मिली जो दर्द की लब बोलने न पाए

लिखवा दिए हैं औरों ने दीवार-ओ-दर पे नाम
इक हम थे अपना नाम-ओ-नसब बोलने न पाए

घर जल रहा था सब के लबों पर धुआँ सा था
किस किस पे क्या हुआ था ग़ज़ब बोलने न पाए

सपनों की गर्म चादरें ओढ़े हुए थे लोग
उतरी थी धूप शहर में कब बोलने न पाए

हम बोलते रहे हैं लब-ए-फ़िक्र से 'सबा'
कुछ लोग अपने-आप से जब बोलने न पाए