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हर मौसम में ख़ाली-पन की मजबूरी हो जाओगे | शाही शायरी
har mausam mein Khaali-pan ki majburi ho jaoge

ग़ज़ल

हर मौसम में ख़ाली-पन की मजबूरी हो जाओगे

रउफ़ रज़ा

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हर मौसम में ख़ाली-पन की मजबूरी हो जाओगे
इतना उस को याद किया तो पत्थर भी हो जाओगे

हँसते भी हो रोते भी हो आज तलक तो ऐसा है
जब ये मौसम साथ न देंगे तस्वीरी हो जाओगे

हर आने जाने वाले से घर का रस्ता पूछते हो
ख़ुद को धोका देते देते बे-घर भी हो जाओगे

जीना मरना क्या होता है हम तो उस दिन पूछेंगे
जिस दिन मिट्टी के हाथों की तुम मेहंदी हो जाओगे

छोटी छोटी बातों को भी इतना सजा कर लिखते हो
ऐसे ही तहरीर रही तो बाज़ारी हो जाओगे