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हर कोई उस का ख़रीदार हुआ चाहता है | शाही शायरी
har koi us ka KHaridar hua chahta hai

ग़ज़ल

हर कोई उस का ख़रीदार हुआ चाहता है

मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल

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हर कोई उस का ख़रीदार हुआ चाहता है
गर्म फिर हुस्न का बाज़ार हुआ चाहता है

देख लेना ग़म-ए-माशूक़ में कुढ़ते कुढ़ते
कुछ न कुछ अब मुझे आज़ार हुआ चाहता है

आँख ललचाई हुई पड़ती है जिस पर मेरी
इश्क़ उस पर मिरा इज़हार हुआ चाहता है

कह दो उस पर्दा-नशीं से तिरी ख़ातिर कोई
आज रुस्वा सर-ए-बाज़ार हुआ चाहता है

पान खा खा के लब-ए-बाम पे वो आने लगा
ख़ूँ हमारा पस-ए-दीवार हुआ चाहता है

कूचा-ए-यार में जाता है अबस तू 'ग़ाफ़िल'
क्यूँ मुसीबत में गिरफ़्तार हुआ चाहता है