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हर किसी से न एहतिराज़ करो | शाही शायरी
har kisi se na ehtiraaz karo

ग़ज़ल

हर किसी से न एहतिराज़ करो

जैमिनी सरशार

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हर किसी से न एहतिराज़ करो
दोस्त दुश्मन में इम्तियाज़ करो

ग़ैर अपने कभी नहीं होते
क्यूँ उन्हें आश्ना-ए-राज़ करो

जब किसी दिल में घर बनाना हो
पहले नज़रों से साज़-बाज़ करो

तुम कहाँ वो निगह-ए-नाज़ कहाँ
अपनी ख़ुश-फ़हमियों पे नाज़ करो

सरफ़राज़ी इसे नहीं कहते
सरफ़राज़ों को सरफ़राज़ करो

क्या तक़ाज़े हैं वक़्त के 'सरशार'
सोज़ को आश्ना-ए-साज़ करो