हर किसी से न एहतिराज़ करो
दोस्त दुश्मन में इम्तियाज़ करो
ग़ैर अपने कभी नहीं होते
क्यूँ उन्हें आश्ना-ए-राज़ करो
जब किसी दिल में घर बनाना हो
पहले नज़रों से साज़-बाज़ करो
तुम कहाँ वो निगह-ए-नाज़ कहाँ
अपनी ख़ुश-फ़हमियों पे नाज़ करो
सरफ़राज़ी इसे नहीं कहते
सरफ़राज़ों को सरफ़राज़ करो
क्या तक़ाज़े हैं वक़्त के 'सरशार'
सोज़ को आश्ना-ए-साज़ करो

ग़ज़ल
हर किसी से न एहतिराज़ करो
जैमिनी सरशार