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हर ख़ुशी तेरे नाम की मैं ने | शाही शायरी
har KHushi tere nam ki maine

ग़ज़ल

हर ख़ुशी तेरे नाम की मैं ने

राशिद क़य्यूम अनसर

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हर ख़ुशी तेरे नाम की मैं ने
वार दी तुझ पे ज़िंदगी मैं ने

इक पियादे ने मात शाह को दी
चाल ऐसी भी इक चली मैं ने

वक़्त भी मुख़्तसर था उस के पास
बात भी मुख़्तसर सी की मैं ने

जो ख़ुलूस-ओ-वफ़ा के पैकर हैं
कम ही देखे हैं आदमी मैं ने

आँख ने जब कभी बग़ावत की
तेरी तस्वीर देख ली मैं ने

काश पूछे कभी मुझे आ कर
छोड़ दी क्यूँ तिरी गली मैं ने

सुब्ह-ज़ौ रोज़ पूछती है मुझे
किस तरह शब गुज़ार दी मैं ने

मुझ को सर्वत की याद आई है
रेल देखी है जब कभी मैं ने

अब मिरी लाश से सवाल करो
किस तरह की है ख़ुद-कुशी मैं ने

मेरी चौखट पे ग़म चला आया
सौंप दी उस को हर ख़ुशी मैं ने

वस्ल को ख़ुद पे ओढ़ के 'अन्सर
हिज्र की दास्ताँ लिखी मैं ने