हर ख़ता उस की हमेशा दरगुज़र करती हुई
फ़ासलों को दिल की चाहत मुख़्तसर करती हुई
ज़ेहन-ओ-दिल की रौशनी को तेज़-तर करती हुई
गुफ़्तुगू सीधे तिरी दिल पर असर करती हुई
मेरे जज़्बों के फ़ुसूँ में क़ैद वो होता हुआ
उस के लहजे की खनक मुझ पर असर करती हुई
ज़िंदगी की तेज़-गामी और दौलत की हवस
आने वाले कल से हम को बे-ख़बर करती हुई
हौसला देता हुआ सा मुझ को मेरा ए'तिमाद
बे-यक़ीनी दिल में पैदा डर पे डर करती हुई
भोला-पन और सादगी पर उस की मैं मिटता हुआ
एक सूरत मोहनी सी दिल में घर करती हुई
किस को ये मालूम ऐ 'नायाब' निस्बत किस की है
मेरे हर नक़्श-ए-क़दम को मो'तबर करती हुई
ग़ज़ल
हर ख़ता उस की हमेशा दरगुज़र करती हुई
जहाँगीर नायाब