हर जगह बंदिश-ए-आदाब की पर्वा न करें
महरम-ए-राज़ से बेहतर है कि पर्दा न करें
इश्क़ की कोहना रिवायात को रुस्वा न करें
बात तो ये है सर-ए-दार भी लब वा न करें
मौत भी सामने आ जाए तो पर्वा न करें
जाँ-ब-कफ़ दिल को मिसाल-ए-दिल-ए-परवाना करें
दिल पे हिर्स-ओ-हसद-ए-बादिया-पैमा न करें
इस से बेहतर है कि शग़्ल-ए-मय-ओ-पैमाना करें
पुर्सिश-ए-ग़म से मिरे ग़म को दो-बाला न करें
ये करम आज से आइंदा दोबारा न करें
उठने लगता है तुम्हें देख के मौहूम सा दर्द
आज से आप मिरे सामने आया न करें
दर्द उठता है अगर चारागरों को ढूँडें
दर्द-ए-उल्फ़त है तो फिर फ़िक्र-ए-मुदावा न करें
वक़्त के हाथ में है खोटे खरे की तस्दीक़
आप अच्छे हैं तो अच्छाई का दा'वा न करें
लग न जाए रुख़-ए-गुल-रंग को अपनी ही नज़र
अपनी सूरत कभी आईने में देखा न करें
छेड़ देती है ये आवाज़-ए-हज़ीं रूह के तार
दम-ए-रुख़्सत लब-ए-गुलरेज़ को गोया न करें
दिल-ओ-ईमाँ तो नहीं हाँ मगर ऐ अहल-ए-सितम
जान हाज़िर है जो मंज़ूर ये नज़राना करें
राज़-ए-सर-बस्ता है दिल और ये बेहतर है कि 'राज़'
पर्दा हम चेहरा-ए-हस्ती से उठाया न करें

ग़ज़ल
हर जगह बंदिश-ए-आदाब की पर्वा न करें
ख़लीलुर्रहमान राज़