हर जानिब से आए पत्थर
अश्क आँखों में लाए पत्थर
इज़्न मिला जब गोयाई का
हम बोले और खाए पत्थर
जब भी कूए यार को निकले
इस्तिक़बाल को आए पत्थर
कैसी ये तक़रीब है यारो
तोहफ़े में तुम लाए पत्थर
जब लोगों से में उकताया
अपने मीत बनाए पत्थर
तोड़ भी देता है ये 'नाक़िद'
लेकिन टूट भी जाए पत्थर
ग़ज़ल
हर जानिब से आए पत्थर
शब्बीर नाक़िद