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हर इक यक़ीन को हम ने गुमाँ बना दिया है | शाही शायरी
har ek yaqin ko humne guman bana diya hai

ग़ज़ल

हर इक यक़ीन को हम ने गुमाँ बना दिया है

असअ'द बदायुनी

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हर इक यक़ीन को हम ने गुमाँ बना दिया है
थे जिस ज़मीं पे उसे आसमाँ बना दिया है

हम ऐसे ख़ाना-ख़राबों से और क्या बनता
किसी से सिलसिला-ए-रब्त-ए-जाँ बना दिया है

हमारे शे'र हमारे ख़याल कुछ यूँ हैं
ख़ला में जैसे किसी ने मकाँ बना दिया है

मोहब्बतों के अमीनों की हैं वो आवाज़ें
कि जिन को ख़ल्क़ ने शोर-ए-सगाँ बना दिया है

ज़मीं तो पूरी तरह हम भी देख सकते हैं
फ़लक को इस ने मगर बे-कराँ बना दिया है