हर इक महफ़िल में ये ही सोचता हूँ
तुम्हारी याद याँ भी आ गई तो
उदासी का ही है अब तक सहारा
उदासी भी अगर उक्ता गई तो
मिरे अहबाब अब तक ख़ुश हैं सारे
ख़बर मेरी ख़ुशी की आ गई तो
अभी तक ज़ख़्म ताज़ा ही पड़े हैं
मोहब्बत फिर करम फ़रमा गई तो
बुला तो लूँ तुम्हें पर सोचता हूँ
बुलाने से अगर तुम आ गई तो
ग़ज़ल
हर इक महफ़िल में ये ही सोचता हूँ
सुनील कुमार जश्न