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हर इक महफ़िल में ये ही सोचता हूँ | शाही शायरी
har ek mahfil mein ye hi sochta hun

ग़ज़ल

हर इक महफ़िल में ये ही सोचता हूँ

सुनील कुमार जश्न

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हर इक महफ़िल में ये ही सोचता हूँ
तुम्हारी याद याँ भी आ गई तो

उदासी का ही है अब तक सहारा
उदासी भी अगर उक्ता गई तो

मिरे अहबाब अब तक ख़ुश हैं सारे
ख़बर मेरी ख़ुशी की आ गई तो

अभी तक ज़ख़्म ताज़ा ही पड़े हैं
मोहब्बत फिर करम फ़रमा गई तो

बुला तो लूँ तुम्हें पर सोचता हूँ
बुलाने से अगर तुम आ गई तो