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हर गुल उस बाग़ का नज़रों में दहाँ है गोया | शाही शायरी
har gul us bagh ka nazron mein dahan hai goya

ग़ज़ल

हर गुल उस बाग़ का नज़रों में दहाँ है गोया

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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हर गुल उस बाग़ का नज़रों में दहाँ है गोया
सूरत-ए-ग़ुंचा जो देखूँ तो ज़बाँ है गोया

ताक की तरह सभी मस्त पड़े ऐंडें हैं
मय-कदा अब गिरौव-ए-बादा-कशाँ है गोया

चश्म है तुर्क निगह नेज़ा ओ मिज़्गाँ तरकश
ज़ुल्फ़-ए-पुर-पेच का हर हल्क़ा कमाँ है गोया

जा भिड़ाता है हमेशा मुझे ख़ूँ-ख़्वारों से
दिल बग़ल-बीच मिरा दुश्मन-ए-जाँ है गोया

'हातिम' अब उस की सभी मुँह की तरफ़ देखे हैं
शीशा मज्लिस में यहाँ पीर-ए-मुग़ाँ है गोया