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हर एक साँस में कुछ दर्द दर्द लगता है | शाही शायरी
har ek sans mein kuchh dard dard lagta hai

ग़ज़ल

हर एक साँस में कुछ दर्द दर्द लगता है

राज खेती

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हर एक साँस में कुछ दर्द दर्द लगता है
मिरा वजूद ही अब गर्द गर्द लगता है

तुम्हारे क़ुर्ब में गर्मी बहुत ग़ज़ब की थी
हवा का हाथ मगर सर्द सर्द लगता है

न जाने आई कहाँ से भिकारीयों की ये भीड़
गदागर आज मुझे फ़र्द फ़र्द लगता है

उसी में देखी थी तस्वीर-ए-काएनात कभी
वो आईना कि जो अब गर्द गर्द लगता है

वो एक हम थे कि समझा हरीफ़ को भी हलीफ़
फ़रेब-कार तुम्हें फ़र्द फ़र्द लगता है

किसी के होंटों की सुर्ख़ी को क्या हुआ है 'राज'
ग़ज़ल का चेहरा भी कुछ ज़र्द ज़र्द लगता है