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हर एक जल्वा-ए-रंगीं मिरी निगाह में है | शाही शायरी
har ek jalwa-e-rangin meri nigah mein hai

ग़ज़ल

हर एक जल्वा-ए-रंगीं मिरी निगाह में है

अख़्तर शीरानी

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हर एक जल्वा-ए-रंगीं मिरी निगाह में है
ग़म-ए-फ़िराक़ की दुनिया दिल-ए-तबाह में है

किसी की याद करम उफ़ अरे मआज़-अल्लाह
तबाह हो के भी ज़ालिम दिल-ए-तबाह में है

हज़ार पर्दों में ओ छुपने वाले ये सुन ले
तिरा जमाल मिरे दामन-ए-निगाह में है

जहाँ में मुझ से भी नाकाम-ए-आरज़ू कम हैं
न रंग आह में है और न सोज़ आह में है