हर एक चेहरे पे कंदा हिकायतें देखो
ख़ुलूस देख चुके हो तो नफ़रतें देखो
जो अहल-ए-दिल हो तो एहसास-ए-आगही के लिए
बुझी निगाहों में तहरीर आयतें देखो
रगों में खोलते ख़ूँ की क़सम न खाओ कभी
गुदाज़ जिस्मों में पिन्हाँ सलाहियतें देखो
जो हो सके तो कभी तपती शाह-राहों पर
टपकते ख़ून से लिक्खी इबारतें देखो
नफ़स नफ़स में है एहसास-ए-यूरिश-ए-हस्ती
ख़ुद अपनी ज़ात से अपनी बगावतें देखो
लबों पे मोहर-ए-ख़मोशी के बावजूद 'रज़ा'
गुज़र रही हैं जो अंदर क़यामतें देखो
ग़ज़ल
हर एक चेहरे पे कंदा हिकायतें देखो
हसन अब्बास रज़ा