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हर एक चेहरे पे कंदा हिकायतें देखो | शाही शायरी
har ek chehre pe kanda hikayaten dekho

ग़ज़ल

हर एक चेहरे पे कंदा हिकायतें देखो

हसन अब्बास रज़ा

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हर एक चेहरे पे कंदा हिकायतें देखो
ख़ुलूस देख चुके हो तो नफ़रतें देखो

जो अहल-ए-दिल हो तो एहसास-ए-आगही के लिए
बुझी निगाहों में तहरीर आयतें देखो

रगों में खोलते ख़ूँ की क़सम न खाओ कभी
गुदाज़ जिस्मों में पिन्हाँ सलाहियतें देखो

जो हो सके तो कभी तपती शाह-राहों पर
टपकते ख़ून से लिक्खी इबारतें देखो

नफ़स नफ़स में है एहसास-ए-यूरिश-ए-हस्ती
ख़ुद अपनी ज़ात से अपनी बगावतें देखो

लबों पे मोहर-ए-ख़मोशी के बावजूद 'रज़ा'
गुज़र रही हैं जो अंदर क़यामतें देखो