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हर दम दुआएँ देना हर लहज़ा आहें भरना | शाही शायरी
har dam duaen dena har lahza aahen bharna

ग़ज़ल

हर दम दुआएँ देना हर लहज़ा आहें भरना

जिगर मुरादाबादी

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हर दम दुआएँ देना हर लहज़ा आहें भरना
उन का भी काम करना अपना भी काम करना

हाँ किस को है मयस्सर ये काम कर गुज़रना
इक बाँकपन से जीना इक बाँकपन से मरना

जो ज़ीस्त को न समझें जो मौत को न जानें
जीना उन्हीं का जीना मरना उन्हीं का मरना

तेरी इनायतों से मुझ को भी आ चला है
तेरी हिमायतों में हर हर क़दम गुज़रना

साहिल के लब से पूछो दरिया के दिल से पूछो
इक मौज-ए-तह-नशीं का मुद्दत के बाद उभरना

ऐ शौक़ तेरे सदक़े पहुँचा दिया कहाँ तक
ऐ इश्क़ तेरे क़ुर्बआँ जीना है अब न मरना

हर ज़र्रा आह जिस का लबरेज़-ए-तिश्नगी है
उस ख़ाक की भी जानिब ऐ अब्र-ए-तर गुज़रना

दरिया की ज़िंदगी पर सदक़े हज़ार जानें
मुझ को नहीं गवारा साहिल की मौत मरना

रंगीनियाँ नहीं तो रानाइयाँ भी कैसी
शबनम सी नाज़नीं को आता नहीं सँवरना

अश्कों को भी ये जुरअत अल्लाह री तेरी क़ुदरत
आँखों तक आते आते फिर दिल में जा ठहरना

ऐ जान-ए-नाज़ आ जा आँखों की राह दिल में
इन ख़ुश्क नद्दियों से मुश्किल हो किया गुज़रना

हम बे-ख़ुदान-ए-ग़म से ये राज़ कोई सीखे
जीना मगर न जीना मरना मगर न मरना

कुछ आ चली है आहट उस पा-ए-नाज़ की सी
तुझ पर ख़ुदा की रहमत ऐ दिल ज़रा ठहरना

ख़ून-ए-जिगर का हासिल इक शेर-ए-तर की सूरत
अपना ही अक्स जिस में अपना है रंग भरना