हर-चंद कि इंसाफ़ का ख़्वाहाँ भी वही है
क़ातिल भी वही और निगहबाँ भी वही है
बर्बादी-ए-गुलशन का जो सामान बना था
बर्बादी-ए-गुलशन पे पशेमाँ भी वही है
है निस्बत-ए-नौमीदी-ए-तारीकी-ए-शब जो
इक मुज़्दा-ए-उम्मीद-ए-फरोज़ाँ भी वही है
पानी में तलातुम भी उसी चाँद के बाइ'स
और अपनी अदा देख के हैराँ भी वही है
ततहीर-ए-सियासत का भी दा'वा है उसी को
तन्क़ीद-ए-हुकूमत से गुरेज़ाँ भी वही है
मुश्किल है मफ़र वहशत-ए-तन्हाई से 'इरफ़ान'
जो क़र्या है आबाद बयाबाँ भी वही है

ग़ज़ल
हर-चंद कि इंसाफ़ का ख़्वाहाँ भी वही है
इरफ़ान वहीद