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हर बुरे वक़्त के अफ़आ'ल बदल देता है | शाही शायरी
har bure waqt ke afaal badal deta hai

ग़ज़ल

हर बुरे वक़्त के अफ़आ'ल बदल देता है

अली मुज़म्मिल

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हर बुरे वक़्त के अफ़आ'ल बदल देता है
इश्क़ दानाओं के अक़वाल बदल देता है

बर्ग-ए-जाँ हैअत-ए-अज्ज़ा का परेशान सा जुज़
देखते देखते अश्काल बदल देता है

वक़्त बेदार मगर है तो तग़य्युर का असीर
जो बदलना हो ब-हर-हाल बदल देता है

इक ज़रा सब्र कि पर्वाज़ का ख़ालिक़ यक-दम
वक़्त आने पे पर-ओ-बाल बदल देता है

कोई मजज़ूब-ए-इलाह जज़्ब-ओ-जुनूँ में आ कर
कुर्रा-ए-अर्ज़ के अब्दाल बदल देता है

हाथ आ जाए अगर नुस्खा-ए-अक़्वाल-ए-'अली'
एक इक क़ौल-ए-मह-ओ-साल बदल देता है