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हर अंजुमन में दावा-ए-वहशत किया करो | शाही शायरी
har anjuman mein dawa-e-wahsaht kiya karo

ग़ज़ल

हर अंजुमन में दावा-ए-वहशत किया करो

सग़ीर अहमद सूफ़ी

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हर अंजुमन में दावा-ए-वहशत किया करो
कुढ़ता हो जी तो लोगों से नफ़रत किया करो

जिन दोस्तों के बल पे सजाते हो बज़्म-ए-ख़ास
इन सब की एहतियात से ग़ीबत किया करो

तौबा करो जो सुब्ह में टूटे बदन की शाख़
शब में बयान मय की फ़ज़ीलत किया करो

घर से चलो तो ज़ेब करो तौक़-ए-बुज़दिली
घर में रहो तो अज़्म-ए-शुजाअत किया करो

करते रहो हरीफ़ों से एलान-ए-सर-कशी
लेकिन मिलो तो उन की इताअत किया करो

दिल्ली में हम-नशीनों से 'सूफ़ी' ख़ुदा बचाए
बस दूर रह के अपनी हिफ़ाज़त किया करो