हर आँख लहू सागर है मियाँ हर दिल पत्थर सन्नाटा है
ये गंगा किस ने पाटी है ये पर्बत किस ने काटा है
चाहत नफ़रत दुनिया उक़्बा ये ख़ैर ख़राबी दर्द दवा
हर धंदा जी का जोखिम है हर सौदा जान का घाटा है
क्या जोग समाधि-ओ-रसधी क्या कश्फ़-ओ-करामत जज़्ब-ओ-जुनूँ
सब आग हवा पानी मिट्टी सब दाल नमक और आटा है
ये रास रंग ये मेल मिलन इक हाथ में चाँद इक में सूरज
इक रात का मौज मज़ा सारा इक दिन का सैर-सपाटा है
घट घाट अंधेरा है कैसे बाँधोगे कहाँ नय्या अपनी
आवाज़ किसे दोगे 'क़ैसी' चौ-धाम यहाँ सन्नाटा है
ग़ज़ल
हर आँख लहू सागर है मियाँ हर दिल पत्थर सन्नाटा है
अज़ीज़ क़ैसी