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हर आइने में बदन अपना बे-लिबास हुआ | शाही शायरी
har aaine mein badan apna be-libas hua

ग़ज़ल

हर आइने में बदन अपना बे-लिबास हुआ

शाहिद कबीर

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हर आइने में बदन अपना बे-लिबास हुआ
मैं अपने ज़ख़्म दिखा कर बहुत उदास हुआ

जो रंग भर दो उसी रंग में नज़र आए
ये ज़िंदगी न हुई काँच का गिलास हुआ

मैं कोहसार पे बहता हुआ वो झरना हूँ
जो आज तक न किसी के लबों की प्यास हुआ

क़रीब हम ही न जब हो सके तो क्या हासिल
मकान दोनों का हर-चंद पास पास हुआ

कुछ इस अदा से मिला आज मुझ से वो 'शाहिद'
कि मुझ को ख़ुद पे किसी और का क़यास हुआ