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हक़ीक़तों से है दुनिया को एहतिराज़ बहुत | शाही शायरी
haqiqaton se hai duniya ko ehtiraaz bahut

ग़ज़ल

हक़ीक़तों से है दुनिया को एहतिराज़ बहुत

जौहर निज़ामी

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हक़ीक़तों से है दुनिया को एहतिराज़ बहुत
कि है मिज़ाज-ए-ज़माना फ़साना-साज़ बहुत

तिरा ग़ुरूर-ए-इबादत तुझे न ले डूबे
सुना है पढ़ता था इबलीस भी नमाज़ बहुत

कोई भी फ़ितरत-ए-यज़्दाँ का रख सका न भरम
जो ना-सज़ा थे वो कहलाए पाक-बाज़ बहुत

ये कह रहे थे कल आवारगान-ए-कूचा-ए-यार
अदाएँ आज भी उस की हैं दिल-नवाज़ बहुत

उन्हें शुऊर-ए-मोहब्बत नहीं ख़ुदा की क़सम
जो लोग हैं तिरी महफ़िल में सरफ़राज़ बहुत

मिरी ख़ुशी का ज़माना हवा का झोंका था
मिरे ग़मों की रही ज़िंदगी दराज़ बहुत

ये हुस्न-ओ-इश्क़ का जौहर है और कुछ भी नहीं
वो ख़ुद-पसंद बहुत हैं मैं बे-नियाज़ बहुत