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हक़ीक़त से ज़बाँ आगाह कर ले | शाही शायरी
haqiqat se zaban aagah kar le

ग़ज़ल

हक़ीक़त से ज़बाँ आगाह कर ले

नसीम देहलवी

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हक़ीक़त से ज़बाँ आगाह कर ले
ये इस्म-ए-अल्लाह बिस्मिल्लाह कर ले

धुन से दूर कर क़ुफ़्ल दुई को
ज़बाँ मिफ़्ताह-ए-इल-लल्लाह कर ले

कुदूरत दिल से खो लहव-ओ-लअ'ब की
सआ'दत से सफ़ा है राह कर ले

मुबारकबाद ऐश-ओ-जाह-ओ-दौलत
हज़ूज़-ए-उम्र ख़ातिर-ख़्वाह कर ले

कहाँ फ़ुर्सत ज़मान-ए-कश्मकश में
मुनासिब है अभी कुछ राह कर ले

जिसे देखा न देख उस को कभी तू
न देखा जिस को उस की चाह कर ले

सख़ा हिम्मत मुरव्वत हैं तिरे पास
कोई हमराह तू हमराह कर ले

भुलावा है तिलिस्म-ए-ज़िंदगानी
विदा-ए-हुब्ब-ए-उज़्व-ए-जाह कर ले

'नसीम'-देहलवी ये आरज़ू है
कहीं अपना मुझे अल्लाह कर ले