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हक़ मेरी मोहब्बत का अदा क्यूँ नहीं करते | शाही शायरी
haq meri mohabbat ka ada kyun nahin karte

ग़ज़ल

हक़ मेरी मोहब्बत का अदा क्यूँ नहीं करते

मुजीब ज़फ़र अनवार हमीदी

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हक़ मेरी मोहब्बत का अदा क्यूँ नहीं करते
तुम दर्द तो देते हो दवा क्यूँ नहीं करते

क्यूँ बैठे हो ख़ामोश सिरहाने मेरे आ कर
यारो मिरे जीने की दुआ क्यूँ नहीं करते

फूलों की तरह जिस्म है पत्थर की तरह दिल
जाने ये हसीं लोग वफ़ा क्यूँ नहीं करते

हर बात परिंदों की तरह उड़ती हुई सी
जो बात भी करते हो सदा क्यूँ नहीं करते

लो देखो 'हमीदी' लब-ए-दरिया पे है दरिया
पर प्यास है कब की ये पता क्यूँ नहीं करते