हक़ मेरी मोहब्बत का अदा क्यूँ नहीं करते
तुम दर्द तो देते हो दवा क्यूँ नहीं करते
क्यूँ बैठे हो ख़ामोश सिरहाने मेरे आ कर
यारो मिरे जीने की दुआ क्यूँ नहीं करते
फूलों की तरह जिस्म है पत्थर की तरह दिल
जाने ये हसीं लोग वफ़ा क्यूँ नहीं करते
हर बात परिंदों की तरह उड़ती हुई सी
जो बात भी करते हो सदा क्यूँ नहीं करते
लो देखो 'हमीदी' लब-ए-दरिया पे है दरिया
पर प्यास है कब की ये पता क्यूँ नहीं करते
ग़ज़ल
हक़ मेरी मोहब्बत का अदा क्यूँ नहीं करते
मुजीब ज़फ़र अनवार हमीदी