हँसते थे मिरे हाल को जो यार देख कर
उन सब ने रो दिया मुझे बीमार देख कर
सब हम-सफ़ीर छोड़ के तन्हा चले गए
कुंज-ए-क़फ़स में मुझ को गिरफ़्तार देख कर
क्या जाने क्या ग़ज़ब है ये जादू भरी निगाह
ग़श कर गया हूँ मैं जिसे यक बार देख कर
ख़ून-ए-जिगर के साथ कहीं जी चला न जाए
रोना ज़रा तू दीदा-ए-ख़ूँ-बार देख कर
अपने 'हवस' पे जब से कि तू मेहरबाँ हुआ
जलते हैं रात दिन उसे अग़्यार देख कर
ग़ज़ल
हँसते थे मिरे हाल को जो यार देख कर
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस