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हँसते थे मिरे हाल को जो यार देख कर | शाही शायरी
hanste the mere haal ko jo yar dekh kar

ग़ज़ल

हँसते थे मिरे हाल को जो यार देख कर

मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस

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हँसते थे मिरे हाल को जो यार देख कर
उन सब ने रो दिया मुझे बीमार देख कर

सब हम-सफ़ीर छोड़ के तन्हा चले गए
कुंज-ए-क़फ़स में मुझ को गिरफ़्तार देख कर

क्या जाने क्या ग़ज़ब है ये जादू भरी निगाह
ग़श कर गया हूँ मैं जिसे यक बार देख कर

ख़ून-ए-जिगर के साथ कहीं जी चला न जाए
रोना ज़रा तू दीदा-ए-ख़ूँ-बार देख कर

अपने 'हवस' पे जब से कि तू मेहरबाँ हुआ
जलते हैं रात दिन उसे अग़्यार देख कर